बहुत समय पहले की बात है। एक नगर में रमेश नाम का एक प्रसिद्ध व्यापारी रहता था। वह न केवल धनी था, बल्कि अपनी ईमानदारी और न्यायप्रियता के लिए भी जाना जाता था। उसने अपने परिश्रम और चतुराई से एक बड़ा व्यापार खड़ा किया था, जिसमें नगर ही नहीं, बल्कि आसपास के कई गाँवों के लोग भी काम करते थे।
लेकिन उम्र बढ़ने के साथ रमेश को एक चिंता सताने लगी। उसकी कोई संतान नहीं थी, और उसे अपने व्यापार के लिए एक योग्य उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी। वह जानता था कि पैसा और व्यापार चलाने की कला सिखाई जा सकती है, लेकिन सच्चाई और ईमानदारी जैसी मूल्यवान चीज़ें व्यक्ति के चरित्र में ही होती हैं।
एक दिन रमेश ने नगर भर में एक घोषणा करवाई
मैं अपने व्यापार का उत्तराधिकारी चुनना चाहता हूँ। इसके लिए मैं नगर के सभी युवकों को एक मौका दूँगा। जो इस परीक्षा में खरा उतरेगा, उसे मैं अपनी पूरी संपत्ति सौंप दूँगा।"moral story
यह सुनकर नगर के हर युवा के मन में उत्सुकता जागी। लोग सोचने लगे कि यह परीक्षा कैसी होगी? कुछ लोगों को लगा कि व्यापारी कोई कठिन व्यापारिक प्रश्न पूछेगा, तो कुछ को लगा कि यह कोई प्रतियोगिता होगी।
निश्चित दिन पर सैकड़ों युवक रमेश के महल में इकट्ठा हुए। व्यापारी ने सभी को देखा और मुस्कराते हुए कहा, "मैं आप सबको एक-एक बीज दूँगा। आपको इसे अपने घर ले जाकर उगाना है और छह महीने बाद यहाँ वापस लाना है। जिसके पौधे सबसे अच्छे होंगे, वही मेरा उत्तराधिकारी बनेगा।"
सभी युवक उत्साहित हो गए और उन्होंने अपने-अपने बीज ले लिए। उनमें से एक युवक था अजय, जो अत्यंत ईमानदार और मेहनती था। वह भी उत्साह के साथ घर गया और बीज को मिट्टी में डालकर उसकी देखभाल करने लगा।
अजय ने अपने बीज को अच्छे गमले में लगाया, उसे रोज़ पानी दिया, धूप में रखा और आवश्यक देखभाल की। लेकिन कई दिन बीतने के बाद भी बीज में कोई अंकुर नहीं निकला।
शुरुआत में उसे लगा कि शायद उसने कोई गलती कर दी है। उसने मिट्टी बदली, खाद डाला, पानी की मात्रा घटाई-बढ़ाई, लेकिन फिर भी बीज नहीं फूटा।
इस बीच, बाकी युवकों के गमलों में हरे-भरे पौधे उग आए थे। कुछ युवकों के तो पौधे बड़े होकर फूल और फल देने लगे थे। नगर में अजय के मित्र और पड़ोसी उसे ताना मारने लगे।
"शायद तुमसे ठीक से देखभाल नहीं हुई!"
"लगता है तुम्हारे हाथ में खेती-बाड़ी का हुनर नहीं है!"
लेकिन अजय ने हिम्मत नहीं हारी। उसने सोचा, "मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैंने पूरी ईमानदारी से मेहनत की है। अगर बीज नहीं उगा, तो मैं झूठ नहीं बोल सकता।"
छह महीने बीत गए। अब वह दिन आ गया जब सभी युवकों को अपने-अपने पौधे लेकर रमेश के पास जाना था। नगर के सारे युवक अपने सुंदर, हरे-भरे पौधों को लेकर महल पहुँचे। लेकिन अजय के पास एक खाली गमला था। वह निराश था, लेकिन उसने झूठ का सहारा नहीं लिया। moral story
जब रमेश ने सभी पौधों को देखा, तो वह आश्चर्यचकित था। हर किसी का पौधा हरा-भरा था, सिर्फ अजय का गमला खाली था। लोग उसे देखकर हँसने लगे।
तभी रमेश ने अजय से पूछा, "बेटा, तुम्हारा पौधा कहाँ है?"
अजय ने सिर झुका लिया और ईमानदारी से कहा, "मुझे नहीं पता। मैंने पूरी मेहनत की, लेकिन बीज से कुछ नहीं उगा।"
सभी युवक उसकी ओर देख कर हँसने लगे। कोई कह रहा था, "कैसा मूर्ख लड़का है!" तो कोई कह रहा था, "इसे व्यापार चलाने के लिए चुना जाना तो असंभव है!"
लेकिन तभी रमेश ने जोर से ठहाका लगाया और बोले, "बिल्कुल सही! यही तो मैं देखना चाहता था!"
सब चौंक गए। रमेश ने हाथ उठाकर सबको शांत किया और बोले,
"मैंने आप सभी को जो बीज दिए थे, वे उबले हुए थे। वे किसी भी हालत में अंकुरित नहीं हो सकते थे। फिर भी, मैं यहाँ सैकड़ों हरे-भरे पौधे देख रहा हूँ। इसका मतलब है कि आप सभी ने असली बीज को फेंक कर नया बीज लगा लिया, सिर्फ अजय ने ऐसा नहीं किया।"
पूरी सभा में सन्नाटा छा गया।
रमेश ने आगे कहा, "व्यापार में बुद्धिमानी जरूरी है, लेकिन सबसे जरूरी है ईमानदारी और सच्चाई। यह गुण जिसके पास होगा, वही मेरे व्यापार को सही तरीके से संभाल पाएगा। इसलिए, आज से अजय ही मेरा उत्तराधिकारी होगा!"
अजय की आँखों में आँसू थे, लेकिन यह खुशी के आँसू थे। बाकी युवक जो अब तक हँस रहे थे, वे शर्मिंदा हो गए। उन्होंने समझ लिया कि जीवन में ईमानदारी सबसे बड़ा गुण होता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो, हमें कभी भी झूठ और धोखाधड़ी का सहारा नहीं लेना चाहिए। सच्चाई की राह कठिन होती है, लेकिन अंत में जीत हमेशा ईमानदारी की ही होती है।
