गाँव रूपनगर बहुत ही सुंदर और शांत जगह थी। वहाँ हर कोई प्रेम और सौहार्द्र से रहता था। उसी गाँव में राम और मोहन नाम के दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। दोनों बचपन से एक-दूसरे के साथ खेले थे, साथ पढ़े थे और हर सुख-दुःख में एक-दूसरे का सहारा बने थे। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि पूरा गाँव उनकी मिसाल दिया करता था।
एक दिन गाँव के प्रधान ने घोषणा की कि पास के जंगल में कई बहुमूल्य औषधीय पौधे पाए गए हैं, जिनका उपयोग दवा बनाने में किया जा सकता है। जो कोई भी इन्हें लाकर देगा, उसे अच्छा इनाम मिलेगा। यह सुनकर राम और मोहन ने तय किया कि वे दोनों जंगल जाकर कुछ औषधीय पौधे इकट्ठा करेंगे और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारेंगे।
अगले दिन सुबह-सुबह वे दोनों अपनी टोकरी लेकर जंगल की ओर चल पड़े। शुरुआत में तो सब कुछ ठीक था। पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी, ठंडी हवा चल रही थी, और सूरज की हल्की रोशनी पत्तों के बीच से छनकर आ रही थी। वे दोनों बड़े उत्साह के साथ पौधों को पहचानकर उन्हें इकट्ठा करने लगे।
लेकिन कुछ ही घंटों बाद, वे जंगल के और गहरे हिस्से में पहुँच गए। वहाँ अंधेरा सा था, पेड़-पौधों की अधिकता के कारण सूरज की रोशनी भी मुश्किल से पहुँच रही थी। अचानक एक जगह राम का पैर फिसला और वह गहरी खाई में गिरने लगा। मोहन ने तेजी से उसका हाथ पकड़ लिया, लेकिन राम का वजन ज्यादा होने के कारण वह खुद भी नीचे गिरने लगा।
संयोगवश, एक मोटी बेल पास में लटक रही थी। मोहन ने तुरंत उसे पकड़ लिया और किसी तरह खुद को और राम को गिरने से बचा लिया। दोनों ने राहत की सांस ली, लेकिन समस्या यह थी कि वे अब उस खाई के किनारे पर लटके हुए थे और ऊपर चढ़ना मुश्किल हो रहा था।
राम को बहुत डर लगने लगा। उसने घबराते हुए कहा, "मोहन, अब हम यहाँ से नहीं निकल पाएँगे। यह जंगल बहुत गहरा है, कोई हमारी मदद करने भी नहीं आएगा!
मोहन ने हिम्मत नहीं हारी। उसने कहा, डरने की जरूरत नहीं, दोस्त। हम साथ हैं और जब तक हम कोशिश करेंगे, तब तक कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा।
मोहन ने चारों ओर देखा और सोचा कि किसी तरह से ऊपर चढ़ना होगा। वह धीरे-धीरे बेल के सहारे ऊपर चढ़ने लगा और राम को भी हिम्मत देते रहा। काफी मेहनत के बाद दोनों किसी तरह ऊपर आ गए और सुरक्षित जगह पर पहुँच गए।
राम की आँखों में आँसू आ गए। उसने मोहन के हाथ पकड़कर कहा, "अगर तुम न होते, तो मैं शायद आज जिंदा नहीं होता। तुमने अपनी जान की परवाह किए बिना मेरी मदद की।"
मोहन मुस्कुराया और बोला, "दोस्ती का मतलब ही यही होता है, राम। दोस्ती सिर्फ अच्छे समय में साथ देने के लिए नहीं होती, बल्कि कठिन समय में भी एक-दूसरे का सहारा बनने के लिए होती है।"
इस घटना के बाद उनकी दोस्ती और भी गहरी हो गई। वे सुरक्षित गाँव लौटे और प्रधान को औषधीय पौधे सौंपे। प्रधान ने उन्हें इनाम दिया, लेकिन सबसे बड़ी खुशी यह थी कि उन्होंने अपनी दोस्ती की असली कीमत समझ ली थी।
शिक्षा
सच्चा मित्र वही होता है जो कठिन समय में भी आपका साथ न छोड़े। सच्ची दोस्ती का मूल्य धन या इनाम से कहीं अधिक होता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे दोस्त हमेशा एक-दूसरे की मदद करते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।